अखबारों कि जरूरत
इंसान को जानने समझने के लिए काफी चिजों के जरुरत होती है उनमें से एक है कि वह पढ़ता किस तरह की चीजें है। उन चीजों में अख़बार भी एक है.
मौजूदा दौड़ में जब हमारे पास जानकारी की कई सरे जड़ाए है उस वक़्त जब हम हिंदी के अख़बारों को देखते है तो ऐसा कों लगता है की ये इंसानों की जानकारी बढ़ाने की जगह उस को दुसरे से नफरत और हम को अँधेरे खाई में धकेल रहा है.
आज जब #अखबार खास कर #हिन्दी और #इलाकाई जबान मे छपने वाली को देखते है तो उन का पहला सफा #निगेटिव खबरों से भरी होती है। सोचने वाली बात है कि उन अखबारों का एडिटोरियल काफी जानकारी देता है, लेकिन उस सफा को पढ़ते कितने लोग है। कुछ बाते जिन पर हम सब को गौर करना चाहिए,
१- जिन खबरों मे दो मजहब, जात और जबान के टकराव कि खबरें हो उन खबरों की हकीकत दुसरे जरिए से जाने तब कोई राय कायम करे ।
२- अखबार मे एडिटोरियल को पढ़ें और उस का मुहासबा करें।
३-जिन अखबारों में समाजिक सरोकार और आपसी भाईचारे को मजबूत करने वाली खबरें हों उन को ही खरिदे।
४. वैसे अख़बार न पढ़े जो जयादा ख़बरें सियासत पर हो न की आम सहरियों से जुरे हुए.
५. न्जवानों के नए रस्ते, साइंस और दुसरे के बारे में जो लिखता हो उसी को पढ़े.
१- जिन खबरों मे दो मजहब, जात और जबान के टकराव कि खबरें हो उन खबरों की हकीकत दुसरे जरिए से जाने तब कोई राय कायम करे ।
२- अखबार मे एडिटोरियल को पढ़ें और उस का मुहासबा करें।
३-जिन अखबारों में समाजिक सरोकार और आपसी भाईचारे को मजबूत करने वाली खबरें हों उन को ही खरिदे।
४. वैसे अख़बार न पढ़े जो जयादा ख़बरें सियासत पर हो न की आम सहरियों से जुरे हुए.
५. न्जवानों के नए रस्ते, साइंस और दुसरे के बारे में जो लिखता हो उसी को पढ़े.