Saturday, 7 December 2019

समाज ही मर गया है

            (फोट सतीश आचार्य के पेज से लिया गया )          

लोग मेरे हुए है।
तब ही तो इतनी तबाही है। जब तक समाज में रहने वालों कि सोच नहीं बदलेगी तब तक कुछ हासिल नहीं होगा। जब लोग मुफ्त में पानी पीने के लिए रखे गिलास भी चोरी कर लेते हैं तो वो समाज कैसा होगा, जहां सरकारी दफ्तर, बैंक और दुकान पर भी 2 रुपए की क़लम को बांध कर रखा जाता है वहां हम क्या ईमानदारी की बात करें।

जिस समाज के लोग ये जानते हुए भी उनके लड़के में सलाहियत नहीं है तब भी वो उसको पैसे, और तालुकात की बिना पर ओहदा दिलवाते हो वो किस मुंह से सलाहियत की बात करता है।

जिस समाज में लोग जात, ज़बान, इलाका और मजहब से ऊपर उठ कर नहीं सोच सकते हो वो किस मुंह से बराबरी और भाई चारे की बात करता है।

जिस समाज में लोग हर लड़की को हवस की नज़रों से देखता हो वो किस मुंह से बेटी, बहन की इज्ज़त की हिफाजत करने की बात करता है।

जिस समाज में लोग किसी को खून ना देते हैं लेकिन जब खुद के या किस करीब वाले को जरूरत होती है उस समाज से किस बात की उम्मीद करते हैं कि वो दूसरे के बच्चों के दावा की कमी से और सरकारी अस्पतालों की कमी के लिए कोई एहतजाज करेगा।

जिस समाज में पैसा ही सब कुछ है उस समाज के लोगों से कोई कैसे उम्मीद करता है वो सलाहियत की क़दर करेगा।

जिस समाज में लोग वेटिंग टिकट पर सफर करना हक समझते हो वहां रिजर्वेशन का मतलब समझेंगे उम्मीद करना भी अपने आप में एक बड़ा मजाक है।

आखिर में जब तक लोग तालीम और डिग्री का फर्क नहीं समझेंगे तब तक समाज अच्छा नहीं हो सकता।

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